मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में आधार कार्ड ने एक अनोखा चमत्कार किया है। दो IAS अधिकारियों, रुचिका चौहान और दिव्यांशु चौधरी, की अगुवाई में शुरू हुई एक पहल ने 10 गुमशुदा लोगों को उनके परिवारों से मिला दिया। यह कहानी न केवल भावनात्मक है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे आधार कार्ड जैसी तकनीक सामाजिक बदलाव का जरिया बन सकती है। दबरा के अपनाघर आश्रम में शुरू हुई इस पहल ने उन लोगों को नई उम्मीद दी, जो सालों से अपने परिवार से बिछड़ गए थे।
आधार कार्ड बना मिलन का जरिया
दबरा के अपनाघर आश्रम में रहने वाले लोगों के लिए आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इस आश्रम में ज्यादातर वे लोग रहते हैं, जो मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हैं या फिर अपने परिवार से बिछड़ गए हैं। ग्वालियर की जिला कलेक्टर रुचिका चौहान और दबरा के SDM दिव्यांशु चौधरी ने इस पहल की शुरुआत अक्टूबर 2024 में की।
दिव्यांशु चौधरी ने बताया कि जब वे पहली बार आश्रम गए, तो वहां के निवासियों के पास कोई भी आधिकारिक दस्तावेज नहीं था। इसके बाद उन्होंने UIDAI से संपर्क किया और तहसीलदार के पत्र के आधार पर आधार कार्ड बनवाने की अनुमति मांगी। उनकी मेहनत रंग लाई और 84 निवासियों का आधार नामांकन किया गया। लेकिन असली चमत्कार तब हुआ, जब पता चला कि इनमें से 23 लोगों का आधार पहले से ही सिस्टम में दर्ज था।
इन आधार डिटेल्स की मदद से अधिकारियों ने उनके परिवारों से संपर्क किया। हालांकि, 13 परिवारों ने अपने रिश्तेदारों को वापस लेने से मना कर दिया, लेकिन 10 लोग अपने परिवारों के पास पहुंच गए। इनमें से एक थीं फतेहपुर, उत्तर प्रदेश की कलावती, जो तीन साल से गायब थीं। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वे अपनाघर आश्रम में रह रही थीं। उनके आधार रिकॉर्ड की मदद से उनका परिवार ढूंढ लिया गया। जब कलावती अपने बेटे शिवशंकर और दामाद से मिलीं, तो वह पल सभी के लिए भावुक कर देने वाला था।
UIDAI ने सराहा, बनेगा मॉडल
इस पहल की सफलता ने न केवल स्थानीय लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि UIDAI और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का भी समर्थन हासिल किया। UIDAI ने मध्य प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों को पत्र लिखकर इस मॉडल को अपनाने की सलाह दी है। खास तौर पर, 20 दिसंबर 2022 को जारी किए गए SOP का हवाला देते हुए, UIDAI ने बाल देखभाल संस्थानों (CCIs) में आधार नामांकन शिविर आयोजित करने को कहा। इस SOP के तहत, अगर कोई बच्चा पहले से आधार में दर्ज है और गुमशुदा होने के बाद दोबारा नामांकन करवाता है, तो सिस्टम डुप्लिकेट आवेदन को खारिज कर देता है। इसके बाद मूल आधार नंबर की मदद से परिवार तक पहुंचा जा सकता है।
UIDAI के भोपाल राज्य कार्यालय के निदेशक सुमित मिश्रा ने इस पहल को सामाजिक कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने सभी अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे अपने-अपने जिलों में ऐसे शिविर आयोजित करें, ताकि और अधिक गुमशुदा बच्चों और वयस्कों को उनके परिवारों से मिलाया जा सके। इस पहल के तहत अब तक कृष्णा, कर्मचंद, सहदेव, देवांश, खेमचंद, लीलावती और देवी जैसे 10 लोगों को उनके परिवारों से मिलाया जा चुका है।
यह पहल न केवल तकनीक के सकारात्मक उपयोग को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे छोटे-छोटे प्रयास बड़े बदलाव ला सकते हैं। अपनाघर आश्रम में शुरू हुआ यह प्रयास अब पूरे मध्य प्रदेश और शायद पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है। आधार कार्ड, जो आमतौर पर पहचान के लिए जाना जाता है, अब परिवारों को जोड़ने का एक मजबूत जरिया बन गया है। यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो सामाजिक बदलाव में विश्वास रखते हैं और तकनीक के सही इस्तेमाल से समाज को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।